चिमटा मारने नाराज घर छोड़ कर भागे भाई बहन 13 साल बाद जा कर मिले, माँ ने नहीं छोड़ी मिलने की राह
Angry brothers and sisters ran away from home and met after 13 years, mother did not leave the expectation to meet them again
आगरा, 28 दिसंबर। 13 साल पहले घर छोड़ कर गए हुए भाई-बहन अब अपनी मां से मिलने आ रहे हैं। सूत्रों के मुताविक शाहगंज की नीतू की शादी किसी बेलदार से हुई थी। शादी के बाद दो बच्चे हुए, लेकिन पति छोड़कर चला गया। नीतू की शादी दोबारा हुई। दूसरा पति भी मजदूरी करता था। वर्ष 2010 में वह अपने पति के लिए घर खाना लेने आई तो नौ साल की बेटी राखी घर में बैठी थी। घर बिखरा हुआ था। नीतू ने गुस्से में उसे एक चिमटा मार दिया। इस पर राखी अपनी मां से नाराज होकर अपने छह साल के अपने छोटे भाई बबलू को लेकर घर से निकल गई। दोनों आगरा कैंट रेलवे स्टेशन से ट्रेन से मेरठ आ गए। वहां उन्हें जीआरपी मेरठ ने पकड़ लिया। उन्हें बिलासपुर का बता कर मेरठ चाइल्ड लाइन के सदस्यों को सौंप दिया। जहां से उन्हें बाल कल्याण समिति के आदेश पर सुभारती कर्ण आश्रम में भेज दिया गया।
वहां से दोनों भाई बहन अलग हो गए। राखी को नोएडा के एक निजी बाल आश्रम और बबलू को लखनऊ के सरकारी किशोर बाल गृह में भेज दिया गया। राखी ने वहां से 12वीं तक की पढ़ाई पूरी की और बबलू ने आठवीं तक पढ़ाई की। स्कूल के रिकॉर्ड में दोनों भाई-बहन के पिता के नाम भी अलग-अलग दर्ज हो गए।
दो हफ्ते पहले चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट रहे नरेश पारस जी ने बेंगलुरु के एक युवक ने संपर्क किया। बताया कि उसकी बहन गुड़गांव में है। वह दोनों आगरा के रहने वाले हैं। 13 साल पहले घर से निकले थे। अब न तो पता याद है न ही परिवार के बारे में भी कोई जानकारी है। वे परिवार के पास जाना चाहते हैं। युवती ने अपनी मां की गर्दन पर जले के निशान बताए। मां बाप के नाम को लेकर भी वह आश्वस्त नहीं थे।
दोनों बच्चे मेरठ में मिले थे। इसलिए नरेश पारस ने मेरठ में संपर्क किया। वहां से जानकारी ली तो रिकॉर्ड में दोनों का पता बिलासपुर लिखा था। मध्यप्रदेश के बिलासपुर में जानकारी की लेकिन वहां कोई रिकॉर्ड नहीं मिला। बबलू और राखी से बात की तो उन्होंने कुछ पुरानी बातें बताईं।
नरेश पारस जी ने आगरा गुमशुदा प्रकोष्ठ के अजय कुमार से संपर्क किया। आगरा में राखी और बबलू नाम के लापता हुए बच्चों की जानकारी मांगी। अजय कुमार ने सभी थानों से जानकारी ली तो पता चला कि १३ साल पहले थाना जगदीशपुरा में यह दोनों बच्चे लापता हुए थे। वहां गुमशुदगी का मुकदमा दर्ज हुआ था। पुलिस जब उनके घर पहुंची तो मां मकान खाली करके जा चुकी थी। इसके बाद पुलिस ने खोजबीन की तो उसका पता शाहगंज के नगला खुशी में मिला। बच्चों के फोटो महिला को तथा महिला की फोटो बच्चों को दिखाए तो उन्होंने आपस में पहचान लिया।
मंगलवार को चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट रहे नरेश पारस और गुमशुदा प्रकोष्ठ के अजय कुमार महिला के पास पहुंचे। महिला ने अपने माता-पिता और दादी को भी बुला लिया था। सभी परिजन लापता बच्चों को देखना चाहते थे। नरेश पारस ने अपने मोबाइल फोन से दोनों बच्चों को वॉट्सऐप पर वीडियो कॉल के माध्यम से कनेक्ट किया। बच्चों को जैसे ही उनकी माँ ने देख मां और नानी रोने लगे। दोनों भाई-बहन की आँखों में आसु आ गए और रोने लगे।
नीतू बार बार रोयते हुए एक ही बात बोल रही थी कि मेने क्यों तुझे चिमटा मारा। बिटिया तू अपने साथ भाई को भी ले गई। तुम्हारी याद में दिन-रात तड़पती रहती हूं। हर वक्त इंतजार रहता था कि कोई मसीहा बनकर आए और तुम्हारे बारे में जानकारी ले कर आये। तुम्हारी याद में समय से पहले बूढ़ीहो गयी । हर समय तुम्हारे फोटो लेकर घूमती रहती हूं।
नीतू पिछले 13 सालों से अपने झोले में बच्चों की फोटो और तहरीर की फोटोस्टेट लेकर घूमती रहती हैं। बार-बार थाने के चक्कर काटती थीं। पुलिस वाले कहते थे कि बच्चे मिलेंगे तो सूचना दे देंगे। इसी वजह से थाने के पास ही कमरा भी किराए पर लिया। आखरी में दोनों बच्चों ने कहा कि हम गुरुवार तक आगरा पहुंच जाएंगे माँ ।
वर्तमान में राखी करती है गुरुग्राम में एक मॉल में बिलिंग काउंटर पर काम और बबलू बेंगलुरु में एक कंपनी में पैकिंग का काम करता है। दोनों ने करीब डेढ़ साल पहले एक-दूसरे को ढूंढना शुरू किया। पुराने आश्रम से पता किया तो बड़ी मुश्किल से मोबाइल नंबर मिले तो संपर्क किया। दोनों भाई बहिन और माँ ने अपना विश्वास नहीं थोड़ा। और आखिर में जा कर एक दूसरे का पता मिल ही गया।