छीपीटोला में भावलिंगी संत आचार्य श्री विमर्शसागर जी महामुनिराज ने बताया पुण्य जीव और पाप जीव में अंतर
आगरा। भावलिंगी संत श्रमणाचार्य श्री 108 विमर्शमागर जी महामुनिराज उत्तरप्रदेश की धर्मनगरी आगरा के छीपीटोला श्री चन्द्रप्रभ जैन मंदिर विराग भवन में विराजमान हैं। आज सुबह आचार्य श्री विमर्शसागर जी महामुनिराज के पावन दर्शन गणिनी आर्यिका श्री आर्षमति माताजी पधारीं।
आर्यिका श्री ने आचार्य भगवन के दर्शनकर भक्तिवश गुरुवर की त्रय परिक्रमा लगाकर द्वय चरण कमलों का पाद प्रदालन कर अपने मस्तक पर धारण किया। उपस्थित विशाल धर्मसभा के मध्य आर्यिका श्री ने गुरुवर के चरणों में श्रद्धा शब्द पुष्य समर्पित करते हुए कहा – मेरा परम सौभाग्य पुण्य उदय में आया जो आज मुझे भगवान के समान साक्षात आचार्य गुरुवर के दर्शन प्राप्त हुए हैं।
विराग भवन में उपस्थित विशाल धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए पूज्य आचार्यश्री विमर्शसागर जी महाराज ने अपने उद्बोधन में कहा मेरे प्रिय साथियों अपने परिणामों को संभालना सीखो आपका सिद्ध भगवान् सम् अंतरंग वैभव स्वयमेव प्रगट हो जाएगा। बन्धुओ ! कोई व्यक्ति पूजा, अभिषेक नहीं करता, जाप ध्यान स्वाध्याय भी नहीं करता, बतलाओ वह व्यक्ति पुण्य जीव है या पाप जीव? आप कहोगे, वह व्यक्ति निश्चित तौर पर पाप जीव है। ध्यान रखना, वह पाप जीव है तो “तुम कभी ऐसे मत बनना| मंदिर आते हो भगवान को देखने के लिए,लेकिन सच-सच बताना तुम मंदिर में आकर देखते किसको हो ? मंदिर आए थे भगवान की वीतरागता देखने के लिए, लेकिन आप कषायवान जीवों को ही देखकर अपनी कषायें बढ़ाते रहते हो। ध्यान रखना, यदि आपकी प्रवृत्ति ऐसी है तो मंदिर में आकर आप धर्म-क्रिया करते हुए भी पाप जीव हैं। आप कभी ‘सच्चे धर्मात्मा नहीं कहला सकते। आपका धर्मानुष्ठान आपको धर्मात्मा नहीं बना सकता। प्रिय धर्मप्रेमियो ! आपको यदि पुण्य जीव, धर्मात्माओं की श्रेणी में आना है तो कभी अंतरंग में क्रोध- मान-मायान्चारी-लोभासक्ति पैदा हो तो तत्काल अपने विकारों को वहीं दबा देना, आप उसी समय पुण्य जीव, धर्मात्मा बन जाओगे। जैन धर्म उदारवादी धर्म है। आपके पास यदि एक कलश भरा जल है तो उसमें से एक-एक बूँद सभी को बाँट देना, सारी दुनियां आपकी हो जाएगी। बन्धुओ! छीपीटोला तो अभी पुण्य का जंक्शन बना हुआ है। आर्यिका आर्षमति माताजी को भी आशीर्वाद देता हूँ, माताजी बड़े ही सहज-सरल व्यक्तित्व की धनी हैं।